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नज़राना इश्क़ का (भाग : 43)






































रात्रि का तीसरा पहर बीत चुका था, सुबह होने ही वाली थी। मगर फरी का जवाब जानने की उत्तेजना में निमय अब तक ठीक से सो नहीं पाया था। उसका दिल बुरी तरह जोर जोर से धड़क रहा था, एक ओर वह अपने दिल की बात कह कर थोड़ा खुश था वहीं दूसरी ओर कहीं फरी इनकार न कर दे इसका डर सताया हुआ था। उसने फोन ऑन किया और सीधे व्हाट्सएप में घुस गया, वहां जाकर उसे हताशा ही हासिल हुई क्योंकि फरी ने अब तक उसकामैसेज नहीं देखा था। उसकी उत्तेजनाए जितनी चरम पर थी, उतना ही डर के मारे हालत भी खराब हो रही थी। एक पल को उसके मन में मैसेज डिलीट करने का ख्याल आया पर अब तो वो केवल इसी के साइड से होता, उसके पास तो रह ही जाता। एक पल को निमय ने उसका जो भी जवाब हो उसे सुनने और मानने के लिए तैयार हो लिया पर अगले ही पल उसके चेहरे पर बारह बज गए, उसने गंदा सा मुँह बनाते हुए फोन फिर से स्विच ऑफ कर दिया।

"मेरा दिल-धड़कन सब तुम्हारें हवाले है
साँसों की वजह तुम हो, इंकार न करना
मेरे बरखा  बारिश सब मौसम तुम हो
मुझसे जुदा अब ये खूबसूरत बहार न करना
अब आदत ही नहीं रही, तेरे बिन जीने की
मुझसे ज़िंदगी मेरी छीनकर, मुर्दो में शुमार न करना
पहली नजर का हुआ ये असर, मुझसे ही मैं हूँ बेखबर
बहुत तड़पा हूँ तेरी चाहत में, अब और बेकरार न करना
मुझे जीने दो साथ अपने, जो भी हश्र होगा  मंजूर है
मुहब्बत कबूल कर लो मेरी, अब तुमसे जुदा नहीं रहना
मैं बस तेरा हूँ, तुम मेरे हो जाओ, इतनी सी गुजारिश है
दिल में रहना है सिर्फ तुम्हें, मुझे अब सिर्फ तेरा ही रहना।"


गुनगुनाते हुए निमय अपने मन ही मन प्रार्थना करने लगा। उसकी बेकरार आँखे बोझिल सी होने लगी, नींद का आलम सा आया और उसे गहरी नींद में आगोश में ले चला, जहाँ वह अपने सजे ख्वाबों को देखने लगा, निमय के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी।

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"ओये घोंचू…. उठ जा! ये कौन सी आदत है बे… किसी दिन छः बजे उठ जाएगा किसी दिन आठ बजे तक खर्राटे भरता रहेगा! चल क्या रहा है हेंह..!" जाह्नवी उसे दोनो हाथों से धकेलते हुए बोली। मगर उसकी उठाने की कोशिश नाकाम रही, उल्टा निमय चादर में लिपट गया।

"बढ़िया है! तुम सो लो बारह बजे तक… मुझे क्या है! मैं जा रही हूँ कूलर बन्द करने!" जाह्नवी मुँह बनाकर बाल झटकते हुए उठी।

"क्या….? सुबह हो गयी?" निमय ऐसे उठा मानो उसने बिजली का नंगा तार छू लिया हो। और उठते ही जोर जोर से अपनी आँखें मलते हुए नीचे कुछ तलाश करने लगा।

"नहीं जनाब! अभी तो परसो की रात चल रही है, आप आज सो जाओ, कल उठ जाना! वैसे भी जागकर कोई पहाड़ तोड़ना तो है नही!" जाह्नवी मुँह बनाकर तंज कसते हुए बोली।

"ये भी ठीक है!" निमय ने उसका हाव भाव देखा और वापिस बिस्तर पर पसर गया।

"अबे उठ ना अब…!" जाह्नवी उसे घूरकर मुँह बनाते हुए बोली। "शुक्र मना कि तेरी खोपड़ी टूटी हुई है, वर्ना तरबूज बना देती तेरा!"

"ऐसे तो मैं हर बार अपनी खोपड़ी हूँ फोड़वा लूँ?" निमय ने उसकी ओर देखते हुए गंदा सा मुँह बनाया। "बड़ी आई…!" 

"ठीक है तू कर अपनी मर्ज़ी का मुझे क्या…!" कहते हुए जाह्नवी गुस्से से बाहर चली गई। निमय जानता  था उसका गुस्सा पलभर का था, पर जैसे ही उसे फरी का ख्याल आया, वो तुरंत अपने फोन पर झपटा, लेकिन कुछ सोचकर उसे बिना ऑन किये ही नीचे रख दिया और उठकर बाहर चला गया।



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दूसरी ओर विक्रम के घर पर

विक्रम और फरी दोनों छत पर टहल रहे थे, फरी आज बेहद खुश नजर आ रही थी मगर उसके चेहरे पर हल्की मायूसी भी थी। वह शहर से काफी दूर पहाड़ो की ओर देख रही थी। विक्रम उसे थोड़ा परेशान देखकर उसके पास गया।

"क्या हुआ फरु? कोई बात है क्या?" विक्रम ने पूछा।

"नहीं भाई! कोई खास बात नहीं है।" फरी ने थोड़ा मुस्कुराकर कहा।

"ठीक है मैं चलता हूँ, मुझे थोड़ा ऑफिस जाना है भाई के साथ! तुम चाहो तो निमय के यहां घूमने जा सकती हो।" कहते हुए विक्रम नीचे चला गया।

"अब मैं आपको कैसे बताऊं भाई..! उनका कॉल ही नहीं लग रहा… मुझे भी कुछ कहना है उनसे!" फरी अपने निचले होंठ चबाते हुए धीरे से बोली। तभी उसका फ़ोन रिंग करने लगा, उसने सोचा कि निमय कॉल कर रहा होगा इसलिए उसके चेहरे पर मुस्कान खिल गयी, मगर कॉल करने वाला व्यक्ति निमय हरगिज न था।

"हेलो बाबा आप...!" फरी ने फ़ोन रिसीव करने के साथ ही चौंकते हुए कहा।

"तो क्या अब हमें अपने बिट्टू से बात करने के लिए भी इजाजत लेनी पड़ेगी?" उधर से नाराजगी भरा भारी स्वर उभरा।

"नहीं बाबा! ऐसा कही थोड़े होता है, कैसे हो आप?" बातें करते हुए फरी छत पर टहलने लगी।

"हम तो बढ़िया हैं बेटा! बस तबियत थोड़ी खराब है।" बाबा ने मुस्कुराते हुए कहा। "अब उम्र हो चली है तो ये सब चलता ही रहेगा।" 

"बाबा प्लीज! मजाक मत करिये, मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ! आप अपना ख्याल क्यों नहीं रखते?" फरी ने डाँट लगाते हुए कहा।

"अरे बिट्टू आप नाहक गुस्सा कर रही हैं, आपके बाबा बिल्कुल ठीक हैं।" बाबा ने फरी को यकीन दिलाया।

"फिर भी हम आपसे नाराज़ हैं!" फरी ने मुँह लटकाकर कहा।

"क्यों? क्या हुआ हमारी बिट्टू को?" बाबा ने कुछ सोचते पूछा।

"आप भूल गए हैं हमें! याद नहीं आती अब आपको हमारी?" 

"ऐसी बात नहीं है बिट्टू! पर अब हम आपको समझा नहीं सकते क्या मुसीबत है। हम पर नजर रखी जा रही है बिट्टू!" 

"ओह…! अब और क्या करना है उन्हें? वो क्यों चाहते हैं मैं उनसे नफरत करूँ?" 

"उनकी नजर अब मल्होत्रा इंडस्ट्रीज पर है, आधे से ज्यादा शहर पर तो पहले से ही उनका कब्जा है! वो हर उस इंसान को घुटने टेकने पर मजबूर कर देगा जो तुम्हें अपना मानेगा।"

"ऐसा बाप होने से अच्छा तो मैं बिना बाप ले रह लेती। मेरी माँ का कातिल…!" घृणा से भर गया फरी का चेहरा, गुस्से से लाल हो चुकी थी।

"मैं उन्हें और ज्यादा देर तक नहीं रोक सकूंगा।" बाबा के स्वर में जमाने भर की बेबसी नजर आ रही थी।

'आखिर वो क्यों पड़े हैं मेरे पीछे! कौन सा बाप ऐसा करता है? नहीं नहीं नहीं… वो इंसान मेरा बाप नहीं हो सकता.. वो तो इंसान होने के भी लायक नहीं है।' फरी के मन में गुस्से का गुब्बार सा उठा, मगर उसने दांतों को पीसते हुए अपन जेहन में ही चबा गयी।

"अपना ख्याल रखना बिट्टू! भले मैं आपके पास न रहूं लेकिन कभी अपने इस बाबा को भूल मत जाना! अब भी हमारा आपके सिवा कोई नहीं है।" कहने के साथ बाबा ने कॉल कट दिया। फरी की नजरों के सामने वो सब दृश्य नाचने लगा जब वह बाबा के कंधे पर बैठी हुई खेल रही थी, जब वे उसे स्कूल छोड़ने ले जा रहे थे, फिर स्कूल से लाना, अपने हाथ से खाना खिलाना, उन्होंने ही उसे अकेले जीना सिखाया, दुनिया से लड़ना सिखाया..! आज उसे बहुत अजीब सा महसूस हो रहा था। वह अपने बचपन से आज तक का बाबा के साथ बिताया गया एक एक पल दुबारा जी रही थी।

"वो चाहें कुछ भी कर ले, पर अब मैं आपको या किसी और को कुछ नहीं होने दूंगी! उन्हें जितना चोट पहुँचाना था उन्होंने कर लिया, अब मैं आप से नहीं छिपने वाली हूँ बड़े साहब…!" फरी के चेहरे पर दृढ़ता के भाव नजर आए, वह तेजी से नीचे की ओर भागी। वह अपने कमरे में जाकर कुछ ढूंढने लगी, थोड़ी ही देर में उसकी कार की चाभी उसके हाथों में थी, वह तेजी से नीचे उतरकर बाहर गयी और वहां से अपनी गाड़ी निकालने लगी। रजनी यह देखकर हैरान हुई कि वह आज बिना बताए घर से बाहर कहाँ जा रही है, मगर इससे पहले वे कुछ पूछ पाती फरी की कार आँखों से ओझल हो चुकी थी।


क्रमशः…..


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2 Comments

सिया पंडित

21-Feb-2022 04:44 PM

इंटरेस्टिंग.

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Dhnyawad

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